किसानों को करे मालामाल, इसे कहते हैं सोना लाल, करे केसर की खेती
किसान भाइयों आपने मनोज कुमार की फिल्म उपकार का वो गाना तो सुना ही होगा जिसमें बताया गया है कि मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती। ये हमारे देश की धरती वास्तव में सोना उगलती है। ये सोना कोई और नहीं बल्कि केसर है, जिसको दुनिया में लाल सोना कहा जाता है। इसका कारण यह है कि मात्र छह महीने के समय में खेतों में उगने वाला ये केसर बाजार में सोने जैसा ही महंगा बिकता है। केसर का मूल्य 3 लाख से 4 लाख रुपये प्रतिकिलो तक है। डिमांड बढ़ने पर इसकी कीमत 5 लाख रुपये तक जाती है। केसर के महंगे होने का प्रमुख कारण यह है कि इसकी खेती समुद्र तल से 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले इलाकों में होती है। इस तरह के स्थान दुनिया भर में बहुत कम हैं। बर्फीले लेकिन शुष्क मौसम में इसकी खेती की जाती है। यदि अधिक नमी वाली या पानी वाली जगह है तो वहां पर यह खेती नहीं हो सकती। विश्व में इस तरह के मौसम वाले खेती की जमीन कम होने के कारण इसके दाम अधिक होते हैं। स्पेन और ईरान मिलकर दुनिया की 80 प्रतिशत केसर पैदा करते हैं। भारत में कश्मीर में इसकी खेती होती है और वो दुनिया का 3 प्रतिशत केसर पैदा करता है। केसर सबसे महंगा मसाला है। इसके अलावा अनेक औषधीय गुणों के कारण पूरे विश्व में बहुत अधिक डिमांड है। सुगंध के कारण इसका प्रयोग कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी होता है। कुल मिलाकर केसर का जितना उत्पादन होता है उससे कई गुना अधिक मांग है। इस वजह से इसकी कीमत बहुत ज्यादा रहती है। आईये जानते हैं कि केसर की खेती किस प्रकार की जाती है।भूमि और जलवायु

खेत की तैयारी कैसे करें
केसर की खेती के लिए सबसे पहले खेत को खरपतवार हटा कर मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। उसके बाद खेत में प्रति एकड़ 10 से 15 टन गोबर की खाद डालकर कल्टीवेटर से तिरछी जुताई करें ताकि खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाये। इसके बाद खेत में पलेवा करके छोड़ दें और जब जमीन हल्की सूख जाये तब एन.पी.के. की उचित मात्रा में डालकर रोटावेटर से जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाये। ये भी पढ़े: रिटायर्ड इंजीनियर ने नोएडा में उगाया कश्मीरी केसर, हुआ बंपर मुनाफाउन्नत किस्में
कश्मीरी मोगरा: केसर की उन्नत किस्मों के बारे में कश्मीरी मोगरा को सबसे अच्छा माना जाता है। इसकी उच्च गुणवत्ता के कारण ही इसका बाजार में मूल्य 3 से 5 लाख रुपये प्रतिकिलो है। इस किस्म की केसरकी खेती केवल जम्मू कश्मीर में ही किश्तवाड़, पम्पोर के आसपास अधिक होती है। इसके पौधे एक फुट की ऊंचाई वाले होते हैं। इन पौधों पर बैंगनी, नीले और सफेद फूल लगते हैं। इन फूलों में दो से तीन नारंगी रंग की पतली से पंखुड़ियां होतीं है, इन्हें ही केसर कहा जाता है। माना जाता है कि एक बीघे में एक किलो केसर हो पाती है। हेक्टेयर की बात करें तो 4 किलो के आसपास केसर मिल जाती है।अमेरिकन केसर
केसर की इस नस्ल पर विवाद भी है। इसको कुछ लोग केसर मानते हैं तो कुछ लोग इसे कुसुम का पौधा कहते हैं। इसकी केसर कश्मीरी केसर की अपेक्षा बहुत कम रेट पर बिकती है। राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों में इस अमेरिकन केसर की खेती होती है। इसकी खेती शुष्क प्रदेशों में होती है और इसके लिए कोई विशेष प्रकार की जलवायु की जरूरत नहीं होती है। इसका प्रयोग सफोला तेल बनाने में किया जाता है।कब और कैसे करें बिजाई

सिंचाई प्रबंधन
यदि वर्षा काल में केसर की बिजाई की जा रही है तो पानी की आवश्यकता होती है। इस समय किसान भाइयों को चाहिये कि वे यह देखते रहें कि वर्षाकाल में बारिश नहीं हो रही है तो बीज बोने के बाद सिंचाई अवश्य कर दें तथा 15 दिन में एक बार अवश्य सिंचाई कर दें। समय-समय पर सिंचाई तो करें लेकिन जब फूल आने वाले हों तो सिंचाई को रोक दें।खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
केसर की खेती में खाद व उर्वरक जुताई और बुआई से पहले ही डाली जाती है। बुआई से पहले प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन गोबर की खाद डाली जाती है। इसके अलावा जो किसान भाई उर्वरकों को प्रयोग करना चाहते हैं वे एनपीके की उचित मात्रा बुआई से पहले अंतिम जुताई के दौरान डाल सकते हैं। उसके बाद जब पौधे की सिंचाई करें तब खेत में वेस्ट डिकम्पोजर डालने से लाभ होता है।खरपतवार प्रबंधन
केसर की खेती में दो बार निराई गुड़ाई करने की आवश्यकता होती है। किसान भाइयों को चाहिये कि बीज से अंकुर निकलने के लगभग 15 से 20 दिन के बीच एक बार निराई करके खरपतवार हटा देना चाहिये और उसके एक माह बाद फिर से निराई गुड़ाई कर देनाा चाहिये।रोग प्रबंधन
केसर की खेती में रोगों के लगने की संभावना कम ही होती है। इसके बावजूद दो रोग अक्सर देखने को मिल जाते हैं।- मकड़ी जाला: ये रोग अंकुर निकलने के बाद पहले या दूसरे महीने में लग जाता है। इससे पौधे के बढ़वार रुक जाती है जिससे उत्पादन प्रभावित हो जाता है। इसके संकेत मिलते ही आठ-दस दिन पुरानी छाछ यानी मट्ठे का छिड़काव करने से लाभ मिलता है।
- बीज सड़न: बुआई के बाद ही यह रोग लग जाता है। इस रोग के लगने के बाद बीज सड़ने लगता है। इस बीमारी को कोर्म सड़ांध के नाम से भी जाना जाता है। इसका संकेत मिलते ही पौधे की जड़ों पर सस्पेंशन कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करना चाहिये।
केसर की तुड़ाई कब की जानी चाहिये

मोगरा केसर ऐसे बनायें
केसर के फूलों से निकली नारंगी पंखुड़ियों को तीन से पांच दिन सुखाया जाता है। उसके बाद इन्हें डंडे से पीट कर मोटी छन्नियों से छाना जाता है। छानने के बाद मिले केसर को पानी में डाला जाता है जो भाग पानी में तैरता है उसे हटा दिया जाता है। पानी में डूबने वाले हिस्सों को निकाल कर सुखाया जाता है। इस तरह से असली मोगरा केसर तैयार हो जाता है। जिसकी कीमत 3 लाख रुपये प्रतिकिलो से अधिक बतायी जाती है। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों के निरंतर प्रयास से इस राज्य के गाँव में हुआ केसर का उत्पादनलच्छा केसर भी बनाया जाता है
पानी में तैरने वाला भाग जो हटाया जाता है। उसे दुबारा पीट कर फिर पानी में डुबाया जाता है। इसमें डूबने वाले हिस्से को फिर पानी से निकाला जाता है जिसे लच्छा केसर कहते हैं। इसकी क्वालिटी पहले वाले से कम होती है।संभावित लाभ
किसान भाइयों केसर की खेती से हमें अच्छी फसल मिलने पर काफी लाभ प्राप्त होता है। एक फसल में केसर की खेती से प्रति हेक्टेयर 3 किलों केसर मिलती है। गुणवत्ता के आधार पर केसर की कीमत लगभग 3 लाख रुपये किलो बताई जाती है। इस तरह से प्रति हेक्टेयर 9 लाख रुपये का लाभ किसान भाइयों को मिल सकता है।
20-Jul-2021